Tuesday, January 11, 2011

क्या पाया, क्या खो देंगे

  हम गमों की रात 
खयालों में काट देते हैं
मिले जो दिन 

उजालों में बांट देते हैं
हम दर्द-ए-दिल को 

बहुत अजीज रखते हैं
मिले जो खुशी 
जमाने में बांट देते हैं
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कौन अंदाजा मेरे 
गमों का लगा सकता है
कौन सही राह 

दिखा सकता है
किनारे वालों तुम 

उसका दर्द क्या जानों
डूबने वाला ही 

गहराई बता सकता है 
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कांटों पर चलकर 
फूल मिलते हैं
विश्वास पर चलकर 

प्यार मिलते है
एक बात याद रखना गालिब
खुशियों में तो सब मिलते हैं
   लेकिन गम में सिर्फ हम मिलते हैं 



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गुस्ताखी ये है 
हमारी
हर किसी से रिश्ता 

जोड़ लेते हैं
लोग कहते हैं 

मेरा दिल पत्थर का है 
लेकिन
कुछ लोग ऐसे भी हैं 

जो इसे भी तोड़ देते हैं 
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रिश्तों में 
पत्थरों की कमी नहीं है
दिल में टूटे हुए 

सपनों की कमी नहीं है
हम चाहते हैं 

उनको अपना बनाना
पर उनके पास 

अपनों की कमी नहीं है 


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उन पर खत्म 
सारी चाहत होगी
फिर ना किसी पर 

ये इनायत होगी
कुछ इस तरह से करेंगे याद उन्हें
न उन्हें खबर होगी, 

न जमाने को शिकायत होगी। 

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उल्फत में अक्सर ऐसा होता है
आंखें हंसती हैं 

और दिल रोता है
मानते हैं हम जिन्हें 

मंजिल अपनी
हमसफर उनका 

कोई और होता है।